याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अतुलानंद अवस्थी, रामेश्वर सिंह ठाकुर, अभय तिवारी व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि स्टेट बार की सामान्य सभा व कार्यकारिणी समिति के बीच परस्पर खींचतान के कारण याचिकाकर्ता फरवरी माह से बिना वेतन काम करने विवश हैं। इस वजह से उन्हें बेहद परेशानी हो रही है। एक तरफ वेतन नहीं मिल रहा, दूसरी तरफ पदोन्नाति को न मानते हुए तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है। यहां तक कि केबिन में ताला तक लगा दिया गया। एफआइआर दर्ज करा दी गई। सामान्य सभा के आदेशों के खिलाफ कार्यकारिणी समिति ने एक के बाद एक आदेश जारी किए। वकालतनामा के हस्ताक्षरों में अंतर पर जांच के निर्देश :
इस मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह के वकालतनामा में हस्ताक्षरों की भिन्नाता रेखांकित हुई। लिहाजा, कोर्ट ने स्टेट बार व हाई कोर्ट बार के नामांकित वरिष्ठ अधिवक्ताओं से अभिमत मांग लिया। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश ने 10 मई को पारित आदेश में विनायक प्रसाद शाह के मामले अपनी बेंच में लिस्ट न करने की व्यवस्था दी थी। विरोधाभासी हस्ताक्षर वाले वकालतनामाओं से बैंच हंटिंग की आशंका उठ खड़ी हुई है। इसीलिए मामले को बेहद गंभीरता से लिया गया। इससे पूर्व अधिवक्ता शाह ने दूसरे वकालतनामा में हस्ताक्षर पेन से कटा होने का तर्क देकर अपने हस्ताक्षर वाला वकालतनामा न होने पर बल दिया। यही नहीं आपत्ति होने पर वकालतनामा वापस लेने की बात भी कही। लेकिन कोर्ट ने इस मांग को नामंजूर कर दिया।