सीएम हेमंत सोरेन के इस्‍तीफे को लेकर लग रहे कयास, भ्रष्‍टाचार के मामले में लालू यादव को भी गंवानी पड़ी थी कुर्सी - AWAM AUR KHABAR

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सीएम हेमंत सोरेन के इस्‍तीफे को लेकर लग रहे कयास, भ्रष्‍टाचार के मामले में लालू यादव को भी गंवानी पड़ी थी कुर्सी

 

सीएम हेमंत सोरेन के इस्‍तीफे को लेकर लग रहे कयास, भ्रष्‍टाचार के मामले में लालू यादव को भी गंवानी पड़ी थी कुर्सी


झारखंड में जारी हाई वोल्‍टेज पालिटिकल ड्रामा  का क्‍लाइमेक्‍स मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पद से इस्‍तीफा  के रूप में सामने आ सकता है। आज शाम कैबिनेट की बैठक के बाद वे आफिस आफ प्राफिट मामले में इस्‍तीफा दे सकते हैं। संभव है कि वे राज्‍यपाल से मिलकर दोबारा सरकार बनाने का दावा भी पेश करें। तस्‍वीर अभी साफ नहीं है, लेकिन देश में पहले भी भ्रष्टाचार  के मामले में मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी गंवाते रहे हैं। इस लिस्‍ट में बिहार के मुख्‍यमंत्री रहे राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव  का नाम भी दर्ज है। इस लिस्‍ट में कर्नाटक के बीएस येदियुरप्पा तथा तमिलनाडु की जे जयललिता भी शामिल हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप के कुर्सी गंवाने वाले पहले सीएम थे लालू

लालू प्रसाद यादव भारत के किसी राज्‍य के ऐसे पहले मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनकी कुर्सी भ्रष्टाचार के आरोप के कारण चली गई थी। खास बात यह है कि उस वक्‍त बिहार व झारखंड एक राज्‍य थे और वे हेमंत सोरेन की तरह वर्तमान झारखंड के भी मुख्‍यमंत्री थे।

चारा घोटाला में देना पड़ा था इस्‍तीफा: साल 1996 में बिहार (वर्तमान झारखंड) के चाईबासा कोषागार में छापेमारी की गई तो इसमें 1990 से 1995 तक पशुपालन विभाग में पशुओं के चारे के नाम पर फर्जी कंपनियों को भुगतान का बड़ा चारा घोटाला उजागर हुआ था। साल 1997 में इस मामले में सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव को आरोपित बनाया था। जब तय हो गया कि उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा, तब उनको

झारखंड में मधु कोड़ा को भी छोड़ना पड़ा था सीएम का पद

लालू प्रसाद यादव एवं हेमंत सोरेन के अलावा झारखंड के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री मधु कोड़ा (Madhu Koda) को भी भ्रष्‍टाचार के मामले में कुर्सी गंवानी पड़ी थी। साल 2006 में निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा गजब की राजनीतिक सेटिंग कर झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए थे। भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली बार कोई निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री बना था। करीब दो साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अगस्त 2008 में शिबू सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उनकी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इस कारण उन्‍हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। आगे 30 नवंबर 2009 को प्रवर्तन निदेशालय ने उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया। उन्‍हें करीब तीन साल जेल में रहना पड़ा।

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