श्रीनगर पहुंचे पीएम मोदी का ये इशारा किसकी ओर, मामला हिंदू धर्म से जुड़ा है?
इस तस्वीर के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. साफ शब्दों में कहें तो श्रीनगर से पीएम मोदी ने बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति की धार को और पैना कर दिया.
अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर चर्चा में है. दरअसल इस तस्वीर में वो किसी पहाड़ी की ओर इशारा कर रहे हैं. मामला हिंदू धर्म से जुड़ा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (ट्विटर) पर ये तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, 'थोड़ी देर पहले ही श्रीनगर पहुंचा हूं, जहां मुझे गौरवशाली शंकराचार्य हिल्स देखने का मौका मिला'.
इस तस्वीर के जरिए प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश है. साफ शब्दों में कहें तो श्रीनगर से पीएम मोदी ने बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति की धार को और पैना किया है.
प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम को चुनाव से पहले कश्मीरी पंडितों को साधने के रूप में भी देखा जा रहा है. क्योंकि जिस शंकराचार्य के नाम पर यह हिल है, उनका सीधा लगाव यहां के कश्मीरी पंडितों से था. घाटी में कश्मीरी पंडितों की संख्या भले ही कम है, लेकिन यहां के पंडित लंबे वक्त से देश के चुनावी मुद्दों में शामिल हैं.
श्रीनगर में शंकराचार्य हिल की कहानी
श्रीनगर से 5 किमी दूर पर स्थित शंकराचार्य हिल शहर के स्तर से करीब 1100 फीट ऊंचा है. इतिहास में इस हिल को लेकर कई तरह के दावे किए गए हैं. पहला दावा शंकराचार्य को लेकर ही है-
मान्यताओं के मुताबिक आदि गुरु शंकराचार्य जब कश्मीर आए थे, तो उन्होंने गोपाद्री पर्वत पर शिव की अराधना की थी. यहीं पर उन्होंने शक्ति के स्वरूप और उसकी महानता के प्रत्यक्ष प्रमाण को अनुभव भी किया था.
उनकी अराधना से खुश होकर कश्मीरी पंडितों ने इस पर्वत का नाम उनके नाम पर ही रख दिया था. हालांकि, इस पर्वत का इतिहास शंकराचार्य से पहले का भी है.
प्रोफेसर उपेंद्र कौल ग्रेटर कश्मीर में लिखते हैं- 371 ईसा पूर्व कश्मीर के राजा गोपादित्य ने इस पर्वत पर एक मंदिर बनवाया था, जिसे ज्येष्ठशिव मंदिर कहा जाता था. मंदिर में भगवान शिव विराजमान थे.
गोपादित्य की वजह से ही इस पर्वत का नाम गोपाद्री पर्वत हो गया. मशहूर इतिहासकार कल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में इस पहाड़ के बारे में लिखा है.
कहा यह भी जात है कि इस्लाम के उद्भव से पहले यहां सुलेमान नामक व्यक्ति ने विजयी प्राप्त की थी. जीत दर्ज करने के बाद सुलेमान ने यहां अपनी गद्दी स्थापित की थी. इसलिए इसे एक वक्त में तख्त-ए-सुलेमान भी कहा जाता है.
मुगल शासन के वक्त इस पहाड़ पर एक मस्जिद भी बनाया गया था. यह मस्जिद किस शासक ने बनवाया था, इसका कोई उल्लेख नहीं है.
कहा जाता है कि मुगल शासक जहांगीर ने अपनी बेगम के साथ यहां हनीमून मनाने आए थे. उसके बाद औरंगजेब भी यहां आए. इतिहासकारों ने उसी वक्त मस्जिद का उल्लेख किया है.
हालांकि, यह मस्जिद सिख और डोगरा शासन काल में तोड़ दिया गया था. आजादी के बाद साल 1961 में द्वारका पीठ के शंकराचार्य ने यहां पर आदि गुरु की प्रतिमा स्थापित करने का काम किया था.
शंकराचार्य हिल का स्ट्रक्चर को भी जानिए
यह हिल डल झील और बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच है. इसे चढ़ने के लिए 250 सीढियां बनाई गई है. कहा जाता है कि यह हिल ज्वालामुखी विस्फोटों से बना हुआ है. वाकया करीब 320 मिलियन वर्ष पुराना है.
प्रोफेसर कौल के मुताबिक 320 मिलियन साल पहले यहां मैग्मा नामक विस्फोट हुआ था. अब इस तरह की विस्फोट की संभावनाएं काफी कम है, लेकिन यहां के लोगों को अब भी इसका डर सता रहा है.
यहां बने मंदिर की वास्तुशिल्प की बात करें तो इसमें अष्टकोणीय आकार और घोड़े की नाल का वक्र शामिल है, जो आज भी इसके निर्माण के अंतिम चरण में देखा जाता है.
जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग के मुताबिक साल 1925 में इस हिल और उसमें स्थित मंदिर का विद्युतीकरण किया गया था.