सोचिए अगर किसी जगह पर चक्काजाम चल रहा है और आप किसी कंपनी के कर्मचारी होने के नाते उसे चक्काजाम में फंसे हुए हैं। इस दौरान अगर आपको गाड़ी निकलवाने के लिए पुलिस से मदद मांगते हैं, लेकिन पुलिस चक्काजाम करने वाले व्यक्तियों पर कार्रवाई न करते हुए आपसे ही आपकी गाड़ी छुड़वाने के लिए रिश्वत की मांग करती हो। यहां प रिश्वत न देने पर गाड़ी मालिक की पुलिस द्वारा निर्मम पिटाई भी की जाती है और उस पर झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है।
बिना सीसीटीवी के कमरे में की पिटाई
पीड़ित को गिरफ्तार कर जब पुलिस स्टेशन ले जाया गया तब रामहर्ष पटेल सहायक उप निरीक्षक द्वारा मोटे बांस के डंडे के साथ बिना सीसीटीवी कैमरे लगे कमरे में ले जाकर पीड़ित को बेरहमी से पीटा गया। पीड़ित की चीख पुकार सुनकर समस्त पुलिस स्टाफ और पीड़ित के रिश्तेदार जैसे ही थाने के अंदर गए तो उसके रिश्तेदारों और मित्रों को बाहर रोक दिया गया।
सासाटावा फुटज से हुई असलियत उजागर
पीड़ित ने अपने सूचना अधिकार के तहत जब पुलिस थाना भालुमाड़ा में लगे सीसीटीवी कैमरों की वीडियो फुटेज प्राप्त की जिससे सारी असलियत सामने आ गई। इस वीडियो को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर जब चलाया गया तो इसमें साफ नजर आ रहा कि भालुमाडा नगर निरीक्षक आरके धारिया के द्वारा आरक्षक मखसूदन सिंह से इस बात की पुष्टि की जाती है कि पीड़ित के द्वारा उसे मारा गया है या नहीं जिस पर आरक्षक के द्वारा बताया जाता है कि केवल हाथापाई ( झूमा झटकी) हुई है। तब नगर निरीक्षक के द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि वह इस मामले में एक दूसरी FIR दर्ज करवाए जिसमें वह याचिकाकर्ता के खिलाफ कॉलर पकड़कर वर्दी फाड़ने का आरोप लगाए। इस पूरे मामले में नगर निरीक्षक के द्वारा एससी-एसटी अधिनियम के तहत नया प्रकरण दर्ज करने की भी बात कही गई है। इसके साथ ही साथ ही एक पुलिसकर्मी ने साथ ही आरक्षक के गले से सोने की चैन उतार ली और उसके बाद कहा कि की इस मामले में लूट भी लगाओ हालांकि उसके बाद में जाने क्या सोचकर पुलिस कर्मियों के द्वारा लूट का प्रकरण तो दर्ज नहीं किया गया था। इस दौरान एक दूसरे सीसीटीवी फुटेज से सामने आया कि जिस कमरे में सीसीटीवी कैमरा नहीं लग गया था वहां से जब पीड़ित को बाहर लाया गया तो वह चलने की भी स्थिति में नहीं था। इसके बाद उसे पुलिसकर्मियों के द्वारा जबरन उठाकर जीप में डाला गया। यह सीसीटीवी फुटेज देखकर यह साफ हो गया कि पुलिस के द्वारा पीड़ित के खिलाफ साजिश रची गई है और मारपीट कर उत्से गाठे आरोप में फत्साया गया है।
पूरे मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जी. एस. अहलूवालिया ने पुलिस महानिदेशक मध्य प्रदेश को निर्देशित करते हुए आदेश दिया कि प्रत्येक जिले के पुलिस अधीक्षकों के द्वारा एक महीने के अंदर उन पुलिस थानों की जानकारी मांगी जाए जिसमें किसी कमरे में सीसीटीवी नहीं है या ब्लैक स्पॉट (जो सीसीटीवी कैमरा रहित है) है। उसके बाद दो माह की अवधि में समस्त जगह ऑडियो सुविधायुक्त कैमरो को लगाया जाए। यदि उसके बाद भी कोई चूक होती है तो यह है न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी। डीजीपी को इस मामले में 18 फरवरी 2025 तक रिपोर्ट सौपनी होगी। इसके बाद अगर मध्य प्रदेश के किसी भी जिले में कोई थाना यदि ऐसा पाया जाता है जो सीसीटीवी रहित है, तो इस पर पुलिस अधीक्षक और संबंधित थाने के SHO पर कार्यवाही की जाएगी।
दोषी पुलिस कर्मियों को 1 लाख 20 हजार का जुर्माना हाईकोर्ट ने इस याचिका को 1 लाख 20 हजार रूपए के अर्थदंड के साथ स्वीकार किया है और इस अर्थदंड का भुगतान दोषी पुलिसकर्मी करेंगे। जिसमें नगर निरीक्षक को 40 हज़ार रूपए सहायक उपनिरीक्षक को 20 हजार रूपए आरक्षक मखसूदन सिंह को 20 हजार रूपए एक अन्य आरक्षक को 20 हजार रुपए एवं दो अन्य पुलिसकर्मियों (प्रतिवादियों) को 10-10 हजार रूपए के अर्थदंड से दंडित किया गया है।
फोटो प्रतीकात्मक है |